ओड़िया के अमर कथा शिल्पी फकीरमोहन सेनापति की कहानियों में औपनिवेशिक काल का सामाजार्थिक विश्लेषण

लेखक

  • डॉ हरे राम सिंह स्वतंत्र विद्वान

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बीजशब्द : यथार्थवाद, आमजन, ग्रामीण जीवन, उपनिवेशवाद, अरुण होता, राजनीतिक परिवेश, त्रासदी आदि।

सार

फकीर मोहन सेनापति ओड़िया कथा-साहित्य के जनक हैं। इन्होंने ओड़िया भाषा और साहित्य को प्रतिष्ठा दिलाने हेतु अथक संघर्ष किया। ओड़िया भाषी जनों में इनके द्वारा विरचित  'गल्प-गल्पस्वल्प ' प्रथम भाग, 'गल्पस्वल्प'-द्वितीय भाग (1817), 'छमाण आठ गुंठ'(1902), 'लछिमा'(1914), 'मामू'(1913),'प्रायश्चित'(1915),' संस्कृत रामायण' का पद्यानुवाद(1884-1895), 'महाभारत' का पद्यानुवाद (1887-1905),'हरिवंश' का पद्यानुवाद(1902),'उपनिषद' का पद्यानुवाद(1905), ' आत्म-जीवनी '(1877) तथा 'श्रीमद्भागवत गीता'(1885) का बहुत सम्मान है। आधुनिक ओड़िया के जनक फकीरमोहन सेनापति इन दिनों अनुवाद की वजह हिन्दी में भी खूब पढ़े जा रहे हैं। ओड़िया साहित्य में यथार्थवादी साहित्य लेखन का श्रेय इन्हें जाता है। हिन्दी के बड़े आलोचकों में- नामवर सिंह, मैनेजर पाण्डेय और ललन प्रसाद सिंह ने उनके लेखन को बखूबी रेखांकित किया है। उनकी तमाम कहानियाँ तत्कालीन समाज व राजनीति का यथार्थ अंकन करती हैं। उनकी कहानियों से गुजरना प्रेमचंद से पूर्व प्रेमचंद का दर्शन करने जैसा है। फकीरमोहन ने भारतीय साहित्य वांग्मय को आमजन के जीवन से जोड़कर साहित्य का बड़ा उपकार किया है। इन्होंने कहानी की नई शैली भी विकसित की है जहाँ यथार्थ व व्यंग्य आसानी से अपना रूप धारण कर लेते हैं। इनकी कहानियों के तुलनात्मक अध्ययन , चरित्रों के विश्लेषण, संवादों के त्वरण से यह ज्ञात होता है कि ओड़िया समाज औपनिवेशिक काल में आर्थिक शोषण का शिकार हुआ। जिसके कारण वहाँ विपन्नता का हाहाकार और भयानक हो गया। इसलिए उनकी कहानियों में हर जगह त्रासदी दिखाई देती है।     

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    प्रसिद्ध कवि, आलोचक, कहानीकार और उपन्यासकार

    स्वतंत्र विद्वान

##submission.citations##

Pandey, M. (2017). Upanyaas Aur Lokatantra [Novel and democracy]. New Delhi :Vani Prakashan.

Senaapati, P. (2020). Phakeeramohan Senaapati Kee Kahaaniyaan [Stories of Fakirmohan Senapati] (A. Hota, Trans.). New Delhi: Sahitya Akadmi.

Singh, L. P. (2011). Pragativaadee Aalochana: Vividh Prasang [Progressive criticism: various contexts]. Varanasi: Kishore Vidya Niketan.

Singh, N. (2009). Premachand Aur Bhaarateey Samaaj [Premchand and Indian society]. New Delhi : Rajkamal Prakashan.

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प्रकाशित

2023-09-03

अंक

खंड

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